मेरे हृदय की संवेदना
भरी भीड़ में खड़ी अकेली
मन में दर्द का अंबार छिपाए
हर पल बस यही सोचती हूँ कि
कौन समझेगा…?
मेरे अंतर्मन की व्यथा,
मेरे हृदय की संवेदना,
मेरे मन की उदासी,
मेरी पीड़ा की प्रबलता,
मेरे दर्द की गहराई,
कौन मिटाएगा…?
मेरे दिल का अकेलापन,
मेरे लबों की गहरी खामोशी,
मेरे अंधेरी रातों का अमावस,
मेरी उदासी के साए,
कौन भरेगा…?
मेरे नीरस जीवन में रंग,
मेरे खालीपन का साँचा,
मेरी उजड़ी ज़िंदगी की बस्ती,
मेरे उमंगों की उड़ान जो
मेरे थके पंखों को दे आसमान,
कौन देगा…?
मेरे दुख-सुख में साथ, और
मेरी ज़िंदगी को नया मक़ाम।
दुनिया का साथ तो है
मगर है वो बेगाना,
कोई भी ऐसा शख्स नहीं है
जो समझे मेरे दिल का हाल,
जो सुने मेरे मन की बात,
इस दुनियाँ की भीड़ में
कोई भी अपना नहीं रहा
सब मतलबी हो गए है,
सब स्वार्थ से भरे पड़े हैं,
सब दिखावे में खो गए हैं
अब कोई किसी के
सुख-दुःख में साथ नहीं है,
सब अपने-अपने लिए जी रहे हैं,
अपने आप में ही सिमटे हुए हैं
फिर भी खोज रही हूं…,
मैं उस एक हंसी चेहरे को,
जो ले आए मेरे जीवन में सकून
मैं उस छोटी सी उम्मीद को,
जो रोशन कर दे मेरी दुनियां।
– सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार