मेरे ही घरमें मैं खो गया हूँ..
मेरे ही घरमें मैं खो गया हूँ
किसी को एक पल भी नही मिलता,
अकेलापन करता है बात मेरी अंखियों से
पर…एक भी अल्फाज,
मैं नहीं सजाता अपनी पलकों पे,
गर्व था मुझे अपने आप पर, अपने घर पर,
लेकिन फिर भी….
मैं रात को वहाँ अकेला घूमता ही नहीं…!!
अंधकार से मैं डरता था,
लेकिन… सूर्य की किरणों का आभास पाकर,
अब मैं डरता नहीं…!!
हे… ईश्वर कितने लम्बे क्यों ना हो हमारे ऐ सारे रास्ते,
फिर भी… अब मैं अपना पता ठिकाना भूलता नहीं,
सागर के तट रेतमें मैने अपना नाम लिखा,
हा. मैं जानता था कि वह मिट जायेगा…!..!
फिर भी.. उम्मीद को जिन्दा रखा..!!
जीने के लिए कई वजह हैं…..यहाँ,
वर्ना… मैं सिर्फ अपने लिए जीता ही नहीं यहाँ …!!!