मेरे हिस्से की धूप
सर्द-सर्द रातें हुई,
सर्द-सर्द हुए दिन।
मिहिका भरमा रही,
अब तो हर एक छिन।
दिनकर भी ओझल हुए,
दिखते अपराह्न बाद।
शीत पवन करती फिरे,
सबसे वाद-प्रतिवाद।
शीतलता कंपा रही,
नहीं अछूता भूप।
जाने कहाँ समा गई,
मेरे हिस्से की धूप।
सर्द-सर्द रातें हुई,
सर्द-सर्द हुए दिन।
मिहिका भरमा रही,
अब तो हर एक छिन।
दिनकर भी ओझल हुए,
दिखते अपराह्न बाद।
शीत पवन करती फिरे,
सबसे वाद-प्रतिवाद।
शीतलता कंपा रही,
नहीं अछूता भूप।
जाने कहाँ समा गई,
मेरे हिस्से की धूप।