मेरे हिस्से का रविवार ,…
सप्ताह भर से प्रतीक्षारत हूं ,
की मेरे हिस्से का रविवार कब आएगा ?
मैं प्रतिदिन योजनाएं बनाती हूं ,
सुकूं से एक दिन मस्ती में गुजारने का ,
वक्त कब मुझे मिल पाएगा ?
कब वक्त वो आएगा मैं कुछ वो कार्य
करूं जिससे मुझे खुशी मिले ।
क्या कभी सच्चा आनंद मुझे मिल पाएगा ?
चूल्हा चौका ,और घर की साफ सफाई ,
तो होती रहेगी ,
उसमें मेरी इतनी खास रुचि नहीं ।
मैं कुछ रचनात्मक कार्य करूं ,
ऐसा फुर्सत का क्षण मुझे कब मिल पाएगा?
मैं कभी बागबानी करूं ,
कोई पौधा लगाऊं , वृक्षारोपण करूं ।
मैं कोई अच्छी से कविता ,कहानी रचूं ।
कोई अच्छी पुस्तक पढूं ।
यह होती है मेरी योजनाएं ।
जिनको बनाने से मुझे जितनी उत्सुकता होती है ,
मगर सम्पूर्ण ना हो पाने से बहुत गहन निराशा ।
आखिर इनको सम्पूर्ण करने को कब ,
मुझे मेरे हिस्से का रविवार मिल पाएगा?