“मेरे हमसफर”
पति का धर्म निभाए ऐसे बन गए मेरे हमसफ़र,
हाथ थामे चल पड़े ,हर कदम साथ चलकर।
रास्ते के काटें हटाकर,
मुस्कान लाते रहे फूल बनकर।
शुक्रिया कैसे करूँ साथ निभाने के लिए,
मुश्किल की घड़ी में हाथ बढ़ाने के लिए।
मेरे रोने पे रोते हो,मेरे हँसने पे हसते हो,
दोस्त बनकर पति मेरे साथ चलते हो।
पति मुझे इतना प्यार करते हो,
रूह बनकर मेरी साँसों में बसते हो।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया हर पल साथ देते हो,
कभी किसी कमी का नही एहसास देते हो।
आपने मेरा दामन भर दिया,
आज मेरा आँचल फूलोँ से भर दिया।
आपके गुस्से में भी प्यार का संकेत है,
गलती न होने पाए ,तेज स्वर का सचेत है।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया मेरे निर्णय का समर्थन दिया,
मान दिया सम्मान दिया ,हमपर एतबार किया।
रूठ जाने पर भी ,आपने मनुहार किया,
दर्द सहकर भी कभी ना अपमान किया।
सपने जो मैंने देखे थे,आपने पूरा किया,
धूप,सर्द सहकर भी आपने साकार किया।
पीहर में जो पिता का रूप है,
ससुराल में वो पति आपने दिया।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया ओ मेरे हमसफर,
साथ रहते हो मेरे हर पल हर डगर।
आपसे सब कुछ मिला,ऐसे जीवनसाथी मिले,
आप को पाकर ऐसा लगे,जैसे मुझे रब मिले।
जन्मों-जन्मों का रिश्ता रहे,
कामना चाहत मेरी हर जन्म में आप ही मिलें।
धर्म पत्नी होती है पर धर्म वीर पति आप है,
ईश्वर के बाद ,पति परमेश्वर आप हैं।
पूजा करू ईश्वर की,पर इबादत आप है,
व्रत करूँ,और ध्यान करूँ पर तीज, त्योहार आप है।
पति मेरे हमसफर,
हमसफर मेरे आप हो।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️