“मेरे स्नेह को, पुकारना, अपने गीत से”
मेरे स्नेह की,
पगी चुनौती,
लेकर देखना,
तुम व्यापक हो,
जाओगे अन्तरिक्ष में,
वहाँ से दुनिया की,
भाग दौड़ रूठ,
जाएगी तुमसे,
अकेले रहकर भी,
वहाँ कितनी शान्ति,
होगी समुद्र सी,
तुम खोजोगे,
मुझे,अपनी,
मधुर आवाज़ में,
मैं तो अदृश्य हूँ,
अन्तरिक्ष की दीवार पर,
दृश्य बनकर जिसे,
कोई नहीं देख पाया,
हाँ शायद तुम्हारी,
आवाज़ से प्रकट,
हो जाऊँ, पवित्र,
बनकर एक साँस,
लेते पत्थर की तरह,
मलयगन्ध योगी,
के शरीर की तरह
पर मेरे स्नेह को,
पुकारना, अपने गीत से,
कई बार,
मैं जरूर आऊँगा।
©अभिषेक पाराशर