मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
ग़ज़ल…
मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
देते नहीं जवाब है साहब अड़े हुए…
मशगूल इतने हो गये कि देखते नहीं
तकलीफ से बेज़ार हुए जो खड़े हुए…
माँ-बाप के सपनों से नहीं आज वास्ता
बेटों को कहाँ ध्यान कि कैसे बड़े हुए…
होना ही चाहिए रिवाज बंद जो गलत
लेकिन अभी भी ढ़ो रहे रशम सड़े हुए….
उनकी बराबरी करो न झोपड़ी में रह
घर में जिनके रेशमी पत्थर जड़े हुए…
खो रहा है आदमी अपनी ही अहमियत
रहता सदा उखाड़ता मुर्दे गड़े हुए…
कैसे कहें सरकार की संविदना सही
कृषक के होश देखिए ‘राही’ उडे़ हुए…
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)