*मेरे सरकार की मस्ती ( 7 शेर )*
मेरे सरकार की मस्ती ( 7 शेर )
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कभी लगता है जैसे तुमको पल भर में बुला लुॅंगा
कभी आवाजें देता हूँ मैं, लेकिन तुम नहीं आते
2
बहुत आवाज दी लेकिन मेरे सरकार कब आए
उनकी बेवजह ही रूठ जाने की ही आदत है
3
बहुत ही खूबसूरत है, मेरे सरकार की मस्ती
किसी ने आज तक उनका मगर चेहरा नहीं देखा
4
तुम्हारा यह नियम अशरीर आने का लगा अच्छा
जमाना पूछता वरना ये साकी कौन आती हैं
5
कभी यह सोचता हूँ हम चलें मशहूर जगहों पर
कभी यह सोचता हूँ दिन तुम्हारे संग में गुजरे
6
यहाँ गुटबाजियाँ भी हैं, यहाँ नफरत भी चलती है
मठों में बैठकर ईश्वर की ही बातें नहीं होती
7
लड़े थे जिन सवालों पर उन्हें आखिर में यह पाया
बहुत छोटे-से मसले थे, न लड़ते तो ही अच्छा था
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451