मेरे सपनों का संसार
आलेख
मेरे सपनों का संसार
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जहां सारे लोग सपने सजाते हों, वहां मैं भला कौन सा विशेष हूं। मैं भी आप सबकी तरह ही सपने सजाता हूं। पर मेरा सपना थोड़ा अलग किस्म का है। जिसे मैं पूरा करने में लगा भी हूं। इसके लिए मुझे किसी का आभार, धन्यवाद भी नहीं चाहिए, क्योंकि मेरा सोचना है कि आप भी बिना हिचक आगे बढ़ते रहने का प्रयास करें। आपकी छोटी सी सफलता और उस सफलता तो बरकरार रखते हुए आगे बढ़ते रहना ही मेरा धन्यवाद है।
सीधे साधे अंदाज में कहूं तो सिर्फ इतना कि जिस किसी भी क्षेत्र में आप हैं,और जितनी भी योग्यता रखते हैं, उसे बिना झिझक और डर के लोगों में बांटिए, प्रेरित कीजिए, उन्हें आगे बढ़ने में सहयोग ही नहीं मार्गदर्शन भी दीजिए। वो आपसे आगे निकल जाएगा, ये मत सोचिए। क्योंकि प्रतिभाएं तनिक ठिठक तो सकती हैं, पर कैद नहीं रह सकतीं। आप इस भ्रम से बाहर निकलकर सहयोग भाव को विकसित कीजिए कि लोग आपसे आगे निकले। निश्चिंत रहिए आप अपनी सोच से भी आगे जायेंगे और साथ ही किसी की प्रेरणा भी बन सकेंगे। किसी के दिल में भगवान सरीखा स्थान स्वमेव बन जायेगा। जो आपकी विशिष्टता को जीवंत रखेगा और आपका मान भी बढ़ता रहेगा। आपके जीवन काल से ही आगे।
मैं अपना उदाहरण देता हूं।आज लगभग २०० से अधिक साहित्यिक व्यक्ति मेरे सीधे संपर्क में हैं जिनसे संबंध तो आभासी है , मगर रिश्ता आत्मिक। जहां वास्तविक रिश्ते भी फीके से लगते हैं। तरुण से लेकर वृद्ध तक, महिला और पुरुष सभी हैं। जिनसे रिश्तों का भरा पूरा अनुभव होता है। बस मैं यथा संभव विकल्पों के आदान प्रदान का प्रयास करता हूं। समस्याओं के निवारण का प्रयास करता हूं। जिसके बदले जो प्यार, दुलार, स्नेह, और आशीर्वाद मुझे मिलता है,वो मेरे लिए भारत रत्न से भी बड़ा है। क्योंकि उन रिश्तों में अपनापन है, लाड़ प्यार दुलार है तो , लड़ाइयां भी हम आपस में करते हैं। शिकवा, शिकायत तो है ही ,रुठते मनाते ही नहीं, डांटते, समझाते भी हैं। उनकी खुशियों से खुश होते हैं, तो दुख से दुखी भी। आभासी रिश्तों में परिवार तक शामिल हैं।
ऐसा लगता है कि एक अलग दुनिया और अलग माहौल है। न किसी से आगे जाने की होड़, न पीछे रह जाने का डर।
उनकी खुशियों में अपनी सफलता महसूस कर ही लेते हैं। लोग बिना संकोच के खुले मन से पीठ पीछे भी तारीफ करते हैं, और जब कोई कहता है कि वो तो आपका मुरीद हो गया है,तब लगता है कि जीवन में कुछ हासिल हो रहा है।
तो मेरा सपना बस यही है कि सहयोग की भावना बिना ईर्ष्या और द्वेष के विकसित हो ,यही सभी के हित में है और हम सबकी जरुरत भी।
सुधीर श्रीवास्तव