मेरे श्याम
हाथ माखन होंठ मुरली . . से सजाया आपने ..
नंद नंदन श्याम जग को . . है रिझाया आपने॥
ऐ मदन गोपाल सुनिए… मैं अकिंचन दीन हूँ
दीन हीनों को सदा ही … उर लगाया आपने॥
मैं दिवानी श्याम की हूँ.. ये सभी को है पता
हंस रहे हैं लोग मुझपर.. क्या रचाया आपने॥
प्यार मेरा आप ही हो…दूसरा कोई नहीं
गिर चुकी दुख कूप में थी…हाँ बचाया आपने॥
मैं न राधा और मीरा..मैं नहीं थी रुक्मिणी
नेह से मुझको भिगोया..पथ दिखाया आपने॥
आपकी ही भावना है.. सब जगत मैं जो बसी
पाप से सबको बचाया.. भव तराया आपने॥॥॥