मेरे शब्द, मेरी कविता, मेरे गजल, मेरी ज़िन्दगी का अभिमान हो तुम
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
मेरी लूट चुकी दुनिया के,
आखिरी निशान हो तुम,
मेरे अपनों की भीड़ में,
मेरी अंतिम पहचान हो तुम,
रिश्तों के तुम रास्ता हो,
मेरी मंजिल के शान हो तुम,
मेरी शेष ख्वाहिशों के,
पूरी जहान हो तुम,
तुम खुद के आशीष नहीं,
आनन्द के शेष आशीष हो,
तुम्हें जो समझ जाए,
ऐसी पूरी मुहब्बत के किताब हो तुम,
मेरे शब्द, मेरी कविता, मेरे गजल,
मेरी ज़िन्दगी का अभिमान हो तुम।