मेरी कविता
मैंने हँसते हँसते ज़िन्दगी से पूछा हैं,
ये क्या हों रहा हैं….?
ज़िन्दगी से मुझे बहुत सुंदर जवाब मिला,
दिल पर हाथ रख कर मैंने खुद ज़िन्दगी से कहाँ?
कहीं जीत बाकि हैं,
कहीं हार बाकि हैं,
अभी तो ज़िन्दगी का सार बाकि हैं….!
मैंने हँसते हँसते ज़िन्दगी से पूछा हैं,
ये क्या हों रहा हैं….?
ज़िन्दगी से मुझे बहुत सुंदर जवाब मिला,
दिल पर हाथ रख कर मैंने खुद ज़िन्दगी से कहाँ?
कहीं जीत बाकि हैं,
कहीं हार बाकि हैं,
अभी तो ज़िन्दगी का सार बाकि हैं….!