मेरे वजूद से जुदा हो गई “राही”
लो हकीकत मेरे वजूद से जुदा हो गई..
आज ज़िन्दगी फिर मुझसे खफा हो गई..
जो कहते थे मुझको हम अपने है तुम्हारे…
आज इक यही बात फिर दास्ताँ हो गयी..
आये पहले दिल में फिर रिश्ता बनाये …
फिर वही कच्चे धागों से सजा हो गयी…
है अंजाम ऐसा हंसी दो पलों का ..
है उसकी जो मर्जी मेरी रज़ा हो गयी ….
मैं खुशियों का दीपक था दिल में जलाए…
धुआं बन रोशनी फिर घटा हो गयी ….
सताते हैं मुझको जलते दिन सुनी रातें..
और शामें तो ग़म की क़ज़ा हो गयी….
तड़पता पड़ा हु अकेला घिरा पत्थरों से…
ये दीवारें छत सब रहनुमां हो गयी ….
नहीं आज बाकी शिकायत किसी से …
सब उम्मीदें ही जीवन से दफा हो गयी..
कल तक जो किस्से मैंने पढ़े थे कहीं पे…
आज वैसी ही जिंदगी फलसफा हो गयी ….
ना सोचा कभी ना बुरा ही किया ….
सीधी जिंदगी क्या से क्या हो गयी ….
आप सब का अपना
राहुल सोनी “राही”