मातृभाषा की पुकार : लिए कोई दिवस न मनाओ
मेरे लिए कुछ करना ही है तो
मेरे लिए कोई दिवस न मनाओ।
तुम्हारे घर में बच्चे होंगे ,
उनको पढने की आदत सिखाओ।
सिखाओ उनको हिंदी
की व्याकरण ।
और व्याकरण का
अभ्यास ,अनुकरण ।
छुट्टी पर उनको
अपने पास बैठाओ
मानस के पात्रों से
परिचय कराओ ।
सीता को ही नही
उर्मिला को भी जानें,
शबरी को ही नहीं,
निषाद को भी पहचानें,
और जब वो अंग्रेजी स्कूल जाएं
तो पहाडा और गिनती उनको
हिंदी में भी सिखाएं।
उन्हत्तर और उनसठ का
फर्क वो जानें,
पता हो क्या है
इकाई ,दहाई के माने।
शेक्सपियर की
जब कभी
बात आए,
उनको कालिदास
के बारे में भी बताएं।
चेतन भगत
पर अगर चर्चा करो,
तो मृत्युंजय पर भी
कुछ खर्चा करो।
किसी जन्मदिन पर
एक लाइब्रेरी भी वनवाओ ।
साल में एक ही सही ,
अच्छी पुस्तक तो जुटाओ।
मेरा खयाल है तो
बस इतना तुम कर दिखाओ,
मेरी दुर्दशा पर
व्यर्थ आंसू न बहाओ।
देवी बनाकर मुझे
ऊंचे न बैठाना।
सखी मान बस
अपने संग चलाना।
? हिंदी दिवस पर मेरी कलम से
हिंदी कहे ?
? योगिता ?