मेरे मुट्ठी में कुछ नही
मेरे मुट्ठी में कुछ नही
वो खाली है
शब्दों के सुंदर सपने हैं
जो ताली बजाने वाली है
चार सुंदर पंक्तियाँ लिख कर
सहेज कर मन के आले पे रखने वाली है
मेरे कंधों पे अपने ही सपने की लाश है
जो कट कर यहां वहां गिरने वाली है
कुछ तुझे मिलने वाली है
कुछ बेकार जाने वाली है
क्यूँ कि जनता भेड़ हुई है
जो शासक के स्वार्थ का ऊन
अपने खुद के पीठ पे ढोने वाली है
और शासक गिद्ध हुआ है
जो नोच-नोच के खाने वाला है
और वो…चार सुंदर पंक्तियाँ
मेरे मरने पे कंधा देने वाली है !
…सिद्धार्थ