मेरे मुक्तक
**********//कुंडलिया//********
हरे वृक्ष मत काटिए, ए जीवन आधार।
लाख जतन कर ले कोई, फिर न हो तैयार।।
फिर न हो तैयार, जतन कितने ही कर लो।
जीवैं न मृत देह, चाहे संगे ही मर लो॥
‘अंकुर’ करत गुहार, धरा क्यों ऊजर करे।
वसुधा के श्रंगार, वृक्ष मत काटो हरे॥
*********//कुंडलिया//********
माना मेरी भूल से, तुम्हें मिले हैं शूल।
शूल फूल बन जाएंगे, हमें जाओ तुम भूल॥
हमें जाओ तुम भूल, न तुमको कभी सताएंगे।
गम हो या हो खुशी, न तुमको कभी सुनाएंगे॥
अंकुर हिय का हाल, न अब तक कोई जाना।
सोचा तुम्हें सुनाऊं, भूल थी मेरी माना॥
********💪लक्ष्य 👍******†*
लक्ष्य हो निश्चित अगर, मिल जायेगा।
हो कठिन श्रम यदि तो, मंजिल पायेगा॥
कार्य हो जितना कठिन, उतना अधिक श्रम चाहिए।
दक्षता के साथ संयम, धैर्य होना चाहिए॥
हार के डर से, न जिसके, पग बढ़े।
वह समय के बीतते, पछताएगा॥
लक्ष्य हो निश्चित अगर, मिल जायेगा।
हो कठिन श्रम यदि तो, मंजिल पायेगा॥
*****🧖*जिन्दगी*******
ए जिन्दगी! तू तो बड़ी मगरूर है।
मैं जितना पास आता हूं,
तू मुझसे उतना दूर है।
तुझे पाने को मैंने,
अपनी जिंदगी गुजार दी।
मुझे मारकर भी खुद को,
कहती बेकसूर है।।
– ✍️निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
जैतपुर, छतरपुर मध्यप्रदेश