मेरे मरने के बाद
तुमको सन्मार्ग की
राह पर प्रेरित
करते हुए जीवन के
तीसरे पायदान पर
आ गया
अब तो जीवन का
कुछ वर्ष ही बचा है
पर आज भी अपने
आपको खाली
हाथ पाया।
सुधरना तो दूर
सुधरने की राह पर
भी चलते हुए
नही पाया
मन आत्मग्लानि से
भर आया
सबके लिए सुभाषितानि
की व्याख्या आजीवन
करता रहा
पर आज अपनो के
परवरिश में स्वयं
को खाली हाथ पाया।
आज अनायास ही
शून्य में निहारते
स्वयं से संवाद करते
जीव के जीवन की
इस विविधता पर
मैं सोच रहा था
अतीत के कई पृष्ठों
को पढ़ रहा था।
मैंने हर वह प्रयास किया
बेहतर से बेहतर
परवरिश दिया
जिन चीजों के लिए
खूब था तरसा
उसे तुम्हे भरपूर दिया
ग्रैजुएशन तक मैं
पैदल सफर करता रहा
पांचवी में ही रेंजर
साइकिल दसवी में
स्कूटर दिया
बेहतर से बेहतर कोचिंग
का इंतजाम किया
जबकि मैंने कभी कोई
ट्यूशन भी नही लिया।
सोचा कि
शायद मेरी इन
बेहतर सुविधाओं से
तुम मुझसे बेहतर करोगे
मेरे हर अरमानों
को तुम पंख दोगे
पर हुआ
ठीक इसके उल्टा
हर कदम पर दिया
तुमने मुझे एक झटका।
अपनी हर नाकामियों
को एक बहाना
ढूंढ लिया
मुझे ही उसका
जिम्मेदार बना दिया।
मरता क्या न करता
कोई अपनो से
कब तलक लड़ा है
भाग्य को भी न जाने
क्या और क्यों पड़ा है?
पर अभी भी
मन मेरा निराश नही
आशावादी हूँ न
मुझे अपने निज
कर्मों पर विश्वास है
तुमको सुधरने का
बस यही आस है।
शायद, निर्मेष
मेरे मरने के बाद ही
तुम्हे सुधारना है
है ईश्वर मेरे भाग्य में
ये तूने क्या लिखा है
यह कैसा दंश है
शायद मेरे ही कीन्ही
जन्मों के कर्म
का शायद यह फल है।
निर्मेष