“मेरे मन की बगिया में”
ऐसे उतरता है तेरा ख़्याल,
मेरे मन की बगिया में!!
चाँदनी ज्यों उतरती है,
हौले-से घर के आँगन में!!
बस वैसे ही कभी मालती-सा,
महक उठता है तन-मन मेरा,
जैसे बदन पर चांदनी बरसती है,
तेरे ख़्यालों की रिमझिम बारिश में!!
ऐसे उतरता है तेरा ख़्याल,
मेरे मन की बगिया में!!
चाँदनी ज्यों उतरती है,
हौले-से घर के आँगन में!!
बस वैसे ही कभी मालती-सा,
महक उठता है तन-मन मेरा,
जैसे बदन पर चांदनी बरसती है,
तेरे ख़्यालों की रिमझिम बारिश में!!