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22 Dec 2020 · 1 min read

मेरे मन का कवि

मेरे मन का कवि जब होता भावुक
पड़ रहा है परिस्थितियों का चाबुक

अपने को नित प्रतिदिन मैं निखारती
हृदय भावों को कागज पर उतारती

आदिकाल से आज तक मैं जीती हूँ
नये प्रयोग कर प्रयोगवाद कहलाऊँ

बसू कबीर की साखी, सबद , रमैनी में
सूर- तुलसी की भव्य भक्ति काव्य शैली में

बिहारी की प्रेम गंगा बही है हर रग में
केशव की कठोर वाणी भी बसी अंग में

प्रगतिवाद पनपता है हर गतिविधि में
नित नव काव्य प्रयोग रचे सद्वृति में

उत्थान पतन समाया है जिस गर्त में
स्वच्छंद विचरती काव्यांगन बिन शर्त के

बिना मेरे नहीं फबे कविता कामिनी भी
मैं प्रकृति हूँ सजे मुझसे हर यामिनी भी

Language: Hindi
71 Likes · 1 Comment · 356 Views
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