मेरे भी दिवाने है
#दिनांक:-1/6/2024
#शीर्षक:-मेरे भी दिवाने है
एक खूबसूरत फोटो देखी मैंने,
जा बैठा एसी पेड़ पर चढ़कर,
दिन -दिन सूरज और गुस्साए जा रहा,
जेठ बैठ गया है जैसे अडकर ।
पेड़ काट अवैधानिक कार्य हो रहा,
आधुनिकीकरण नाव पर सवार हो रहा ।
नदी सूखकर मैदान हो रही,
बर्फ पिघल कर सागर आकार हो रहा,
पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता जा रहा।
गर्मी ये सूरज की नहीं जान पड़ती,
सियासत की घी भी आग लगाती दिख रही ।
तीखी नौ तपा धूप के साथ महीना जून आया,
महंगाई की चाल में पसंद बस नून आया।
राजनीति में राज्य दिल्ली तल रही ।
भीषण गर्मी से धरती जल रही?
हर तरफ चर्चा हो रही है चार-पांच जून का,
पर्यावरण दिवस और दमदार मजमून का ।
पिघलता पारा हर तरफ गर्माहट फैला रहा ,
जल रहे लोग माचिस भी अब शरमा रहा ।
कैसे नदी पर्वत प्रकृति हीन रह पाएंगे ?
जिन्दा है, पर इस गर्मीं में मर जाएगे ।
हाय री गर्मी तेरे नखरे कैसे झेलें,
किसी कारणवश बाहर कैसे निकले?
सौन्दर्य नारी पर आक्षेप लग रहा,
दीवाने आरोप-प्रत्यारोप कर रहा ।
क्यूकि गर्मी तो सौन्दर्य की रानी बन इतराती ,
तीखा नक्श दिखा सूरज संग इठलाती ।
मैं सुन्दर नयन नक्श, चोख लुभावन लगने दो,
मेरे भी दिवाने हैं, उनको भी नखरे कुछ दिखने दो।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई