मेरे भी थे कुछ ख्वाब,न जाने कैसे टूट गये
मेरे भी थे कुछ ख्वाब, न जाने कैसे टूट गए।
मन के सभी अरमान, यूँही बर्बाद हो गए।
जीवन के रंग-बिरंगे सपने, जैसे हवा में उड़ गए।
मुसाफिर रूह के आंगन में, एक दूसरे से छूट गए।
खोये रंग, खोयी खुशियाँ, हर तरफ है अँधेरा।
ज़िंदगी की किसी भी राह में, मैं हुआ बेखबरा।
दिल के तारों की धुन सी, बहुत बड़ी ही गहराई है।
जब ख्वाबों की नैया डूबी, सपनों की अब रेज़गार है।
आज भी दिल में एक उम्मीद, अन्धकार को छेड़ रही।
मेरे ख्वाबों के फूल जब फिर खिलेंगे, जीवन को आबाद करेंगी।
खोये हुए ख्वाबों की एक आवाज, अब तक सुनाई देती है।
जीने की चाह में जब उठूं, फिर से उड़ने की धुन बजाई देती है।