मेरे भारत में तुम्हारी नहीं चलने वाली
तुम्हारी कारगुजारी नहीं चलने वाली
काला धन कालाबजारी नहीं चलने वाली
गए वो दौर जो शोषण के चलाए तुमने
हुजूर अब नई पारी नहीं चलने वाली
खुली तिजोरी तो हँसते हुए बोली दौलत
तुम्हारे पीछे ये नारी नहीं चलने वाली
जिसे संजोया था तुमने बड़ी हिफाजत से
वो पाँच सौ वो हजारी नहीं चलने वाली
खड़ा है मुल्क एक साथ आज लड़ने को
तुम्हारी चाल शिकारी नहीं चलने वाली
सुनों आतंक के आकाओं बानी ‘संजय’ की
मेरे भारत में तुम्हारी नहीं चलने वाली