मेरे भाई तुम कुछ बोलो !
मेरे भाई तुम कुछ बोलो,
देखो गुलिस्तां बरबाद हो रहा,
झूठ से भरा हर संवाद हो रहा
धर्म भी अब शर्मसार हो रहा,
शासन वाले लोग संत हो गए,
चोर उच्चके सब महंत हो गए।
न्याय व्यवस्था का बुरा हाल है,
हर मुद्दे पर हो रहा बवाल है।
देखो सड़कों पर बेबस बच्चे,
हाथ फैलाए भीख मांग रहे।
देखो किसान कर्ज में डूबे,
खुद को दरख्तों पर टांग रहे।
देखो महंगाई अब,
नागिन बन सबको डसने लगी।
और व्यवस्था बेशर्म होकर,
नागरिकों पर ही हंसने लगी।
देखो बोलने का भी,
अब तो जैसे अधिकार नहीं।
आलोचना किसी को भी,
अब कतई स्वीकर नही।
अब भी यदि तुम,
मौन यूंही रह जाओगे।
अत्याचार शासन का,
चुपचाप जो सह जाओगे।
इतिहास तुम्हे भी,
माफ नहीं कर पायेगा।
जो तटस्थ हैं उनका भी,
अपराध लिखा जायेगा।
वक्त का अब तकाज़ा है,
खुद को थोड़ा झकझोरो।
इससे पहले की देर हो जाए,
मेरे भाई तुम कुछ बोलो।