मेरे बिना अधूरा!
ये दुनिया समझदारो से चलती है।—-+—-आसमान में जाकर ऊंची उड़ान भरती है। तुझे क्या बताऊं मितवा, ये लड़ती और झगड़ती है।—-हमेशा मूर्खो को नकारा करतीं हैं।—-सच बताऊं मितवा उसी से पहली श्रेणी बनती है।—तुम्हे समझदार बनाने में मूर्ख का हाथ ही रहता है।—-+–जिस मंच पर खड़े हो,वो उसने ही बनाया है।—ये पूरी जिंदगी बिना तारीफ के जी लेता है।पर! तुम्हें वह बुलंदियों पर पहुंचा देता है।–मै कभी मूर्ख तो कभी मजदूर रहता हूं।पर !मेरे बिना तू हमेशा अधूरा रहता है।