मेरे बारे में मत सोच
मेरे बारे में मत सोच ये,
हम अपना खयाल स्वंय रखें।
तुम चलते रहों नए पथ पर
कोई नया तराना छेड़ कर।
मुझे आभास होता है ,नहीं अब,
द्रुम की शीतल छांव खानें की।
उर्मिला की विरह वेदना,
मुझको जो मिला वरदान में ।
राजा जनक की पुत्री होकर भी
वनवास मिला जो उनके भाग्य में
हम तो ठहरे साधारण मानुष
इससे कैसे बच पाएंगे ?
रब रखेंगें हिसाब मेरे भी कर्मो का,
जिसका फल मुझे भी मिलेगा ।
मेरे बारे में मत सोच ये,
हम अपना खयाल स्वंय रखें।
गौतम साव