मेरे पिता
पिता हैं बरगद की छाया,
जिसके नीचे हम पले-बढ़े।
कितने भी दुख आये हम पर,
पिता ही सम्मुख खड़े रहे।
बोली में थी कितनी कटुता,
दिल में भरी थी अथाह मिठास।
मेरी छोटी -छोटी परेशानी का भी,
हो जाता हैं स्वयं आभास।
पिता का प्रेम हैं एक पहेली,
जो किसी ने अब तक न जाना।
कभी कठोर हो जाते हैं वे,
कभी मोम बन जाते हैं।
पिता ही हैं भाग्य विधाता,
जीवन योग्य दिशा दिखलाता।
कभी गंभीर ,कभी हंसमुख
हारे नही किसी के सम्मुख।
परिवार की वो नींव हैं,
उनके ही हम जीव हैं।
पिता का अहोदा सबसे ऊंचा,
चाहे ऊँचा हो गगन।
ऐसे मेरे प्रिय पिता को ,
मेरा शत-शत बार नमन।