मेरे पिताजी की पुण्यतिथि
आई तुम्हारी मधुर याद,नयन नीर भर आए।
साथ बिताए सुखद पलों की,याद हृदय में आए।।
आज आपके श्रीचरणों में, श्रद्धा भाव समर्पण है।
अश्रुविंदु के गंगा जल से, स्वीकार करो निज तर्पण है।।
मेरे पिताजी पंडित श्री गणेश राम चतुर्वेदी जी शास्त्री थे सो वेद वेदांग ज्योतिष एवं संगीत के अच्छे ज्ञाताओं में जाने जाते थे। उनके सानिध्य में मुझे कई आचार्य एवं संत महात्माओं के दर्शन सत्संग का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बचपन से लेकर उनके प्रयाण तक की स्मृति अंतस में सजी हुई है। आज हम जिस मुकाम पर हैं सब उन्हीं की मेहनत एवं आशीर्वाद का फल है। उनका जीवनकाल मुझे ही नहीं अपितु उनके हजारों शिष्यों को अनुकरणीय रहा है। उनका सरल संतोषी शांतिप्रिय जीवन प्रेरक था। बे माया मोह से ऊपर, जीवन में ही, जीवन मुक्त जीवन जी कर, हंसते हंसते अगली यात्रा पर चले गए। सुख दुख में सम रहना उनका विशेष गुण था। साथ ही बे इतने सहृदय एवं प्रेमी थे कि उनके जाने के बाद कई लोगों से मिला, वे सभी कहते थे, महाराज जी हमें बहुत प्रेम करते थे कोई कहता वह अपने बेटे से भी अधिक प्रेम करते थे रिश्तेदार इष्ट मित्र शहरी या ग्रामीण सभी उनके गहरे प्रेम संबंध के लिए उन्हें याद करते हैं। धैर्य साहस सम दृष्टि संतोष सदाचार जैसे गुणों के कारण वे समाज में परम सम्मान एवं वैभव को प्राप्त हुए। अपने जीवन काल में मैंने देखा उनको लेश मात्र भी आलस नहीं था लंबी यात्राओं के बाद, बिना आराम किए दूसरी यात्रा पर जाने तत्पर रहते थे। निद्रा पर भी उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थी, संगीत की महफिल में रात भर गाने के बाद सुबह तरोताजा रहते थे, उनके दिन के कार्य बाधित नहीं होते थे उनके संबंध में यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि उन्होंने अपने ऊपर बुढ़ापे को हावी नहीं होने दिया, कहना चाहिए कि आखिरी सफर भी उन्होंने अपने पैरों पर किया। जब उन्हें जाना था तो 2 दिन पहले ही भोपाल आकर अपने नाती पोतियों को मेला दिखा गए थे, वही मेरी आखिरी मुलाकात हो गई। जाने के बाद भी मुझे लगता है वह हृदय में मेरे साथ ही हैं। श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन ।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी