मेरे देश का विकास देखो.घोड़ी है चढ रहा
मेरे देश का विकास देखो घोड़ी है चढ रहा
आरक्षी सुरक्षा,अधिवक्ता है न्याय मांग रहा
हाल बेहाल क्या होगा देश का बद बदत्तर
अन्नदाता जिस देश का है भूखा मर रहा
अनपढ़ है शिक्षामंत्री,बीमार स्वास्थ्य मंत्री
लोकतंत्र भी न्यायालय से न्याय मांग रहा
मानवीय मूल्यों का जहाँ मोल भाव होता
नागरिक जहाँ लाचार, पत्रकार बिक रहा
रोटी,कपड़ा ,मकान की जहाँ हो किल्लत
अमीर अमीरी में,गरीब गरीबी से लड़ रहा
आठों पहर करे काम, ना मुँह को निवाला
मजदूर मजबूरी की है चक्की में पिस रहा
जहाँ बच्चों को नहीं मिले अनिवार्य शिक्षा
ज्ञान अज्ञानता की जहाँ भट्ठी में जल रहा
मूलभूत आवश्यकताओं से है जन वंचित
देश विकास सूचकांक जहाँ है रूक रहा
व्यवसायिकरण हुई है शिक्षा चिकित्सिका
विद्यालय , चिकित्सालय है राह ताक रहा
भ्रष्टाचार बीमारी से है लिप्त सराकरी तंत्र
राजतंत्र नकाबपोश में ढका नजर आ रहा
कर्मचारी, अधिकारी प्रत्येक वर्ग हैं कुंठित
फिर विकास देश का है किस राह जा रहा
चुनावी दौर में जो हैं विकास की हाँ भरते
चुनाव बीत जाने पर सत्ता रंग है चढ रहा
मेरे देश का विकास देखो घोड़ी है चढ रहा
आरक्षी सुरक्षा अधिवक्ता है न्याय मांग रहा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत