मेरे दिल के कक्ष में ही कहीं
मैं
अपने कक्ष में
एक मूर्ति की तरह
हो गई हूं
स्थापित
ऐ मेरे अपने घर के
पुराने आईने
तुम्हें आना है तो
अपनी जगह से उठकर
चलकर
मेरा चेहरा जो देखना
चाहते हो तो
मेरे पास आओ
मेरे समक्ष खड़े हो जाओ
मेरे दिल के कक्ष में ही
कहीं स्थापित हो जाओ
तुम भी बन जाओ
मेरे मन से ही
निर्मल, कोमल और
पावन
सौंदर्यवान,
ऊर्जावान और
महान
तुम मुझसे दूर न रहो
मुझसे विभाजित न
रहो
मुझसे जुड़ जाओ
मेरे गुणों को अपना लो और
मुझे सदा के लिए
अपनाते हुए
अपना बना लो।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001