मेरे जैसा दिन भी टूटा
मेरे जैसा
दिन भी टूटा . I
शाम हुई
ज्यों धुँधली आशा I
ढूँढ़ ढूँढ कर
नव परिभाषा ।
स्वयं स्वयं के मन की कोई,
आज धुँए में धँसी निराशा ।
लगा आईना हाथ से छूटा ।
बूढ़ी होती
दुःखी दुपहरी ,
अस्ताचल
सविता को देखी l
लाठी टेके सन्ध्या आती,
लगे बुढ़ापा रात सरीखी ।
रजनी को ज्यों तम ने लूटा I
भोर शोर के
सेतु के जैसे ,
आशा रश्मि
फूट ही आई।
बाँधे रहती कब तक कैसे,
अरुण ने रथ जब
तेज चलाई।
जीवन से दिन रहा न रूठा . !