मेरे जीवन सहचर मेरे
मेरे जीवन सहचर मेरे,
क्यों तुम दूर खड़े हो ?
आओ पास हमारे कह दो
मेरे हित ही बने हो ।
तन्द्रा व भय की रेखाएँ
हैं जीवन को घेरे ।
बन कर मेरे शूर सारथी
काटो जो शूल पथ घेरे ।
मेरे मन के मीत न कोई
विरला तुम सा दूजा ।
मंदिर की मूरत जैसा है
प्यार मेरा पाकीज़ा ।
मन के तार शिभिल हो जाते
अगर न छेड़े जाएं ।
जीवन रूठ जायेगा मुझसे
अगर नहीं तुम आए।
इक तेरा सम्बल पाकर ही
मन धीरज धर पाता ।
प्रेम निधि में अवगाहन कर
क्लान्त हृदय हर्षाता ।