*मेरे जीवन में योग-क्रिया का योगदान*
संस्मरण
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
मेरे जीवन में योग-क्रिया का योगदान
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
वर्ष 2020 – 21 में कोरोना के प्रकोप से बचने में #सुदर्शन_क्रिया मेरी मुख्य मददगार रही । सितंबर 2007 में मैंने इसे रामपुर में सीखा था । पाँच दिन का कोर्स था ।
इससे पहले मैं रामपुर में ही फर्राशखाने में योगाभ्यास तीन-चार दिन तक सीख चुका था । इसे #स्वामी_रामदेव जी के कुछ शिष्यों ने संचालित किया था ,जिनमें प्रमुख “कुमार फर्नीचर” सिविल लाइंस वाले श्री सतीश जी थे । सीखने वालों की संख्या कम थी । इस पर सतीश जी कुछ हतोत्साहित भी होते थे और कहते थे कि हम अपनी साधना में से समय निकाल कर आते हैं और लोग मुफ्त में भी नियमित रूप से सीखने के लिए नहीं आते ।
बाद में मुझे सुदर्शन-क्रिया अपनी संपूर्णता में पसंद आई और मैंने उसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया । एक दिन के लिए भी मैंने सुदर्शन क्रिया नहीं छोड़ी । पहला लाभ तो यही हुआ कि मेरी बेड-टी की आदत चली गई । कई महीने तक मैंने चाय पूर्णतः छोड़ी रखी लेकिन फिर एक बार जब चाय पीने के बाद भी अगले दिन मेरा ध्यान पूर्ववत लग गया ,तब मैंने सोचा कि चाय से कोई फर्क नहीं पड़ेगा । फिर चाय पीना तो शुरू हो गया लेकिन बेड-टी बंद ही रही ।
सुदर्शन क्रिया प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु #श्री_श्री_रविशंकर द्वारा खोजी गई एक अत्यंत शक्तिशाली योग क्रिया है। यह श्री श्री की संस्था #आर्ट_ऑफ_लिविंग के बेसिक कोर्स में सिखाई जाती है । मैंने बेसिक कोर्स के बाद चार-पांच दिन का #एडवांस_कोर्स भी किया था। इसमें मौन रहकर शिविर में रात-दिन बिताने होते हैं । एक “#सहज_समाधि_मेडिटेशन_कोर्स” भी मैंने किया । इसमें ध्यान लगाना विशेष रूप से बताया जाता है ,यद्यपि मैं उससे पहले ही ध्यान लगाने लगा था । इस कोर्स की विशेषता यह है कि इस में गुरुदेव के प्रतिनिधि साधक के कान में #एक_मंत्र प्रदान करते हैं । यह मंत्र ध्यान लगाने में सहायक होता है , हालांकि मुझे कई-कई महीनों तक इस मंत्र का ध्यान ही नहीं आता है।
सुदर्शन क्रिया एक निश्चित लय और ताल में साँसो का अभ्यास है । लेकिन इससे पहले पैर ,कमर और कंधों के व्यायाम भी हमें सिखाएं गए थे । वज्रासन में बैठकर “#थ्री_स्टेज_प्राणायाम” जब हम शिविर के दौरान करते थे ,तब वहां एक सज्जन कहने लगे कि क्या रोज- रोज यही होता रहेगा ? दरअसल वह मोटे थे और उनसे वज्रासन में नहीं बैठा जा रहा था । सबको सांस लेने की क्रियाएं भी रास नहीं आतीं। लेकिन भीतर की शुद्धि सिवाय सांसो की क्रियाओं के और किसी भी तरह से नहीं हो सकती । चेहरे पर एक मुस्कुराहट भर कर “#भस्त्रिका” में जब हम हाथों को पूरी ताकत के साथ आसमान की तरफ लेकर जाते हैं और नीचे तुरंत लाते हैं ,तब एक प्रकार से पूरा शरीर खिल जाता है । गति ही जीवन है और सुर तथा ताल उसे आनंद प्रदान कर देते हैं । #नाड़ी_शोधन_प्राणायाम अथवा अनुलोम-विलोम सांसो की सर्वविदित लाभकारी क्रिया है ।
ध्यान लगाना मेरे अवचेतन मन में न जाने कैसे पहले से बैठा हुआ था । जब सुदर्शन क्रिया सीखी ,तब उसके बाद मैं विधिवत रूप से #ध्यान लगाने लगा। अनेक बार ऐसा लगा कि मैं ईश्वर को जानने के बिल्कुल निकट हूं और अगले ही दिन यह महसूस होने लगा कि ईश्वर से मेरा कोई परिचय नहीं हुआ है । इसी धूप-छांव में वर्ष पर वर्ष बीतते चले गए । अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा ।
शारीरिक और मानसिक रूप से असाधारण लाभ सुदर्शन-क्रिया और ध्यान से मिलता है । सुदर्शन क्रिया आरंभ करने से पहले हम ओम का उच्चारण करते हैं ,जिस के लाभ भला कौन जान सकता है ? हजारों वर्षों से यह एक रहस्यमई शक्ति के रूप में मनुष्य का कल्याण करती रही है ।
आध्यात्मिक उन्नति का वह पक्ष जो आत्मा और परमात्मा से संबंधित है ,अगर हम एक क्षण के लिए छोड़ भी दें तो भी योग का सबसे बड़ा लाभ शरीर और मन के स्तर पर होता है । शरीर रोगों से मुक्त हो जाए और मन शांत अवस्था को प्राप्त कर ले ,इससे बढ़कर उपलब्धि जीवन में और क्या हो सकती है ।
जब हम सुदर्शन क्रिया करके ध्यान लगाते हैं और वह एक क्षण के लिए भी लग जाता है ,तो समझिए जीवन की सारी अशांति उसके साथ ही बह जाती है। और रह जाता है ,केवल दूर-दूर तक फैला हुआ #शांति_का_विशाल_साम्राज्य । इसकी तुलना हम मोबाइल के “#पावर_ऑफ” नामक एक फंक्शन से कर सकते हैं । एक क्षण के लिए भी मोबाइल को “पावर ऑफ” की स्थिति में ले जाने से मोबाइल के भीतर की सारी कमियां दूर हो जाती हैं और वह एक नया जीवन प्राप्त कर लेता है । कुछ-कुछ ऐसा ही एक क्षण के लिए ध्यान में जाने से हमारे जीवन में बहुत बड़ा आधारभूत परिवर्तन आ जाता है । ध्यान से पहले का जीवन और ध्यान के बाद का जीवन दो अलग-अलग चीजें हैं । #हम_रोजाना_एक_नया_जीवन_प्राप्त_करते_हैं ।
योग साधना का अर्थ यह नहीं है कि हमारा शरीर नश्वर नहीं रहेगा अथवा हमें बीमारियों का कोई स्पर्श नहीं होगा । शरीर तो नाशवान था , है और हमेशा रहेगा । फिर भी नाशवान शरीर का अर्थ यह नहीं होता कि हम जीवन की स्फूर्ति और उत्साह को खो दें। इस उत्साह की निरंतरता ही तो जीवन का आनंद है । योग हमें इसी का अवसर प्रदान करता है। समस्याएं रहेंगी । वह जीवन का एक अभिन्न अंग है । लेकिन वह हमारे भीतर विद्यमान अनंत शांति को समाप्त नहीं कर पाएंगी। प्रतिदिन हम “पावर ऑफ” की प्रक्रिया से गुजरते हैं और एक नई ताजगी जीवन में ले आते हैं ।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451