“मेरे जीवन की स्वर्णप्रभा”
अभी अभी तो आयी है ,
मेरे जीवन की स्वर्णप्रभा,
अलसायी कली हो उठी मुखरित,
जैसे रश्मियों से हो अनुरंजित,
अधखिली खिली सी कली,
लाज से रक्ताभ हो चली,
सकुचाती अकुलाती ……,
अपनी छवि देख मुस्काती ,
शीतल मंद बयारों में ,
अपने सुरभित श्वांसों को ,
नव कल्पनाओं में भरती,
आशायें लेकर आयी हैं ,
मेरे जीवन की स्वर्णप्रभा ||
…निधि …