मेरे जिस्म-ओ-जान पर…
मेरे जिस्म-ओ-जान पर,
इख़्तियार सा है उसका ।
वो कहती है मुझसे मोहब्बत नहीं है उसको,
फिर भी गले लगाएगी इंतजार सा है उसका।
जिस्म तन्हा है और रूह प्यासी है मेरे बगैर,
फिर भी न जाने क्यों इनकार सा है उसका।
यादों के तसब्बूर में भटकता हूँ मैं दर-बदर,
क्यों लगता है जैसे दिल बेकरार सा है उसका।
उसके रुख़्सार का रौनक सलामत है मुझसे,
कोई पुछे तो फिर वही इकरार सा है उसका।
के. के. राजीव