मेरे जज्बात जुबां तक तो जरा आने दे
मेरे जज्बात जुबां पर तो जरा आने दे..
अश्क को आंख से बाहर तो जरा आने दे
वो मेरे दिल को कई जख्म दिए बैठे है..
दर्द भीतर से भी खुलकर तो जरा आने दे…
वार करना तो मुझको भी बहुत आता है
मेरे हाथो में भी पत्थर तो जरा आने दे…
कोई शिकवा भी करूं उनसे करूंगा कैसे
मुझको तस्कीन से मिलकर तो जरा आने दे..
ये भी मुमकिन है कोई भूल नहीं हो उनकी
उनको “शर्मा “के समझकर तो जरा आने दे…
रमेश शर्मा…