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22 Feb 2021 · 1 min read

मेरे गाँव का मौसम!

गज़ब का ढंग दिखाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।
शहर के रंग रंगाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

यूँ अंधी दौड़ में विकास को, बिन जाने पहचाने।
काट कर पेड़ लगा बाग की, पहचान मिटाने।।
आंगन का कुआ पटवाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।
घर घर मिनरल पहुँचाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

गज़ब का ढंग दिखाने लगा, मेरे गाँव का मौसम….
शहर के रंग रंगाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

खेत – खलिहान, मुडेर, तोड़ तालाबों की पगडंडि।
वह कच्चे रास्ते वह खेत, प्यारी मिट्टी की हंडी।।
बैलों की चाल मिटाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।
कल कारख़ाने बनाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

गज़ब का ढंग दिखाने लगा, मेरे गाँव का मौसम….
शहर के रंग रंगाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

अब कहाँ खेल कोई, बालपन के उछल कूद का।
नही चौपाल बचे, बूढ़ो के राजनैतिक युद्व का।।
खो खो कबड्डी भुलाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।
गिल्ली डंडा भी छुड़ाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

गज़ब का ढंग दिखाने लगा, मेरे गाँव का मौसम….
शहर के रंग रंगाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

प्रेम से मिलना जुलना, भाईचारा पड़ोसी से।
वो मांग लाना तोषक गद्दे, रजाई खामोशी से।।
भुला विष बेल उगाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।
प्रीत की रीत मिटाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

अज़ब का ढंग दिखाने लगा, मेरे गाँव का मौसम….
शहर के संग ही जाने लगा, मेरे गाँव का मौसम।।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०/१०/२०२० )

1 Like · 2 Comments · 532 Views
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