मेरे कान्हा
मेरे कान्हा
———–
लाख करो प्रयत्न तुम,बिन प्रभु कृपा के सब आधा है।
जिसका जग में कोई नहीं, उसके साथ
करूणामयी राधा है।।
उर से सुमिरन कर लो, मुरली धर
गोविंद का।
वहीं प्रभु को प्यारा है,जो भजन करे
गोविंद का।।
पल-पल नाम रटूं में तेरा,तेरा ही में
जाप करूं।
आंखें जब भी बंद करती,तेरा ही
में दर्शन कंरू।।
सुबह -शाम में तुमको ध्याती,
तेरा ही सुमिरन करती।
आ जाओ मेरे कान्हा तुम,पथ में तेरा
हर -पल तकती।।
नैनों में छवि बसी तुम्हारी,
सांवली प्यारी -प्यारी।
अंखियां तरस रही दरश को,
में वंशीधर तुमसे हारी।।
प्रभु तुम हो करूणानिधान,
होते सदा भक्तों पर कृपाल।
भक्त तुम्हारे दर पर आ,
हो जाते हैं सभी निहाल।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,