मेरे आराध्य
आराध्य बिना कविता अधूरी,
भावों ने बना ली अब दूरी,
मन नहीं जाता क्षितिज पार,
उनके बिना छाया अंधकार,
आराध्य ही हैं मेरी कविता,
उसमे दिखती मेरी वनिता,
करता हूं शब्दों की पूजा,
इसके सिवा नहीं कोई दूजा,
मन में होता है एक प्रकाश,
जब जब देखता हूं आकाश,
साथ रहते मेरे बन निराकार,
कविता में देता उनको आकर,
आराध्य बिना कविता अधूरी,
भावों ने भी बना ली दूरी,
गए वह अब किधर,
तरस रहे मेरे अधर,
आ जाओ बंशीधर,
आ जाओ गिरधर,
।।।जेपीएल।।