मेरे आत्मदेव का ही विलास
जहाँ देखूं; तहां बस मेरे,
आत्मदेव का ही विलास |
साधो! दूर नहीं दुर्लभ कहीं,
हरदम पिया मेरा पास ||
तन – मन बुद्धि, इन्द्रियों,
चित्तादि से भी चिति पार |
परमं सुन्दर शांत निर्मल,
नीज साक्षी तत्व निराकार ||
हे देव ! अज़ब है;गज़ब है,
अकर्ता-अभोक्ता कैसा यार |
असंग है; न रूप न रंग है,
अलबेला प्रीतम सर्वाधार ||
बीन सत्ता न हिलता पत्ता,
अनंत ब्रह्मांड तेरा व्यापार |
आश्चर्य न सत्य असत्य है,
हे अथक-अथाह नमस्कार ||
-जयशंकर नाविक