*मेरे अल्फाज़ तुम्हारे है*
**मेरे अल्फाज़ ….तुम्हारे हैं,
बस कहने को ..अंदाज मेरे ..अपने है,
गर अंदाज़ तुम्हारे निराले है,
अपने भी अंदाज़ ..विरले है,
आज मेरे है कल किसी और के होंगे,
इन पर कहां रुकते ….सपने अपने है,
कब काम हुआ … अल्फाज़ों पर,
चौपाई,रमैणी,दोहे अज्ञान को क्षण में हरते हैं,
“आप्त वचन” बिन “अनुभव” कब अपने बनते है,
अंध-अनुशरण,अंध-अनुकरण कर और अधिक नुकसान अपना करते है,
जो “अल्फाज़” विवेक जगा देते है ..वे सब अपने है,
वरन् महेंद्र सभी “अल्फाज़” गुलामी को आमन्त्रण देने जैसे है,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,