मेरे अल्फाज
तुम आशिकी हो मेरी,इस बात समझा करो
यूँ हमसे ना बेरुखी से पेश आया करो
बहुत मुकद्दर से मिलते हैं चाहनेवाले
गर कोई फूल दे,तो उसे पत्थर से ना मारा करो
माना की मेरी आशिकी तुम्हें ना पसन्द है
यह शक्ल-सूरत तुम्हें ना पसन्द हैं
पर जो लिखते हैं तुम पर शेरों-शायरी
अपने मोहल्ले के ऐसे लड़कों को कभी समझाया करो
:कुमार किशन कीर्ति,बिहार