मेरे अल्फाज
इतने करीब न आओ कि फिर तुम्हारे विना हम रह न सकें
वो ख्वाब न दिखाओ कि जो कभी पूरे हो ही न सकें
चंद रोज की है अपनी ये मुलाकात इस अजनबी शहर में
इस तरह निगाहें न मिलाओ कि हम नजरें हटा न सकें
अपने दिल में न वसाओ इसतरह कि हम घर जा न सकें
जख्म नासूर न बनाओ कि जिसे फिर हम छू भी न सकें
हकीकत जरा बताओ इस पागल को फरेव में न रखो
इतना दिल न दुखाओ कि इस दर्द को हम सह न सकें
इतने उजालों में न रखो कि फिर हम अंधेरे में रह न सकें
हमें अभी न हँसाइये कहिं उम्र भर सागर मुस्करा ही न सकें
छोड़ कर जाओगे तुम एक रोज हमको ये तो मुकम्मल तय है
इतना साथ न रहो कि फिर राहुल कुमार अकेले रह न सकें
ये रोग इश्क का न लगाओ जिसकी दवा भी मिल न सके
इतनी बारिश न करो कि ये जमींन फिर सूखी हो न सके
इन खतों को अपने तक ही सीमित रखो, मेरे पास न भेजो
क्या फायदा खत तो हों पर कभी हम तुमसे मिल न सकें
वेखॉफ शायर :-
? राहुल कुमार सागर ?
बदायूंनी