” मेरे -अपने “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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हँसना चाहता हूँ हँसाना चाहता हूँ ,
कुछ हास्य कविता गढ़ना चाहता हूँ !
हँसी के लम्हों को इकठ्ठा करके मैं ,
चेहरे पे बस मुस्कान देना चाहता हूँ !!
कभी दिल चाहता प्यार ही प्यार हो ,
खिलखिला कर प्यार की बहार हो !
ज़िंदगी कुछ भी नहीं इसके सिवा ,
प्यार की गंगा का अविरल धार हो !!
व्यंग में अनुराग प्रेम हम करते रहें ,
दूसरों को सम्मान ही हम करते रहें !
हो सुगम आनंद का क्षण हर हमेशा ,
सबके दिलों में राज भी करते रहें !!
शालीनता ,शिष्टाचार है अस्त्र अपना ,
माधुर्यता ,सम्मान, प्रेम है वस्त्र अपना !
जीतना है प्यार से ही सारे जहां को ,
सबको पास लानेका है शस्त्र अपना !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत