मेरे अंतर्वेदना
मेरे भीतर कुछ टूट रहा है,
ज्ञात नहीं , क्या ?
स्वयं को टटोला फिर भी,
मन के अंदर ही कुछ घटा है.
घाव तो लगे थे कई, पूरी तरह ज़ख़्मी था,
और पीड़ित भी.
यह तड़पन, यह बचेनी ,
यह रोना और कलपना .
युहीं नहीं था दिल का जलना ,
जो सदा सीने में महसूस किया.
एक आग सी जलती रही ,
जिसकी तपन सिर्फ मुझे सुलगती रही
उस आग में जल गए थे मेरे सारे सपने,
मेरी चाहत, मेरी अभिलाषाएं,मेरी इच्छाएं .
और तो और मेरा स्वाभिमान भी .
मेरा आत्मविश्वास मर गया.
हाँ ! निसंदेह यह करुण- विलाप ,
यह आहें इनकी ही थी.
येही टूट रहे थे , सुलग रहे थे, और मर रहे थे,
मेरे अंदर जी रहे थे अब तक !
मेरे यह परजीवी .
मगर मैं जीवित हूँ जाने क्यों?
मैं खुश हूँ या नहीं हूँ!
मगर मेरे अंदर सब कुछ समाप्त होने को है
मैं क्या हूँ ? बस एक जीवित लाश .
जिसका अंतिम संस्कार होना बाकी है,
यह है मेरी अंतर्वेदना !