मेरी ग़ज़ल
नाजो नखरों में पली मेरी ग़ज़ल
है कनक जैसी खरी मेरी ग़ज़ल
इतने रंगों में रँगी मेरी ग़ज़ल
फागुनी सी लग रही मेरी ग़ज़ल
ये भिगो देती है मन के द्वार को
भावनाओं की नदी मेरी ग़ज़ल
मन कभी भी इससे भरता ही नहीं
जाम मय का बन गयी मेरी ग़ज़ल
भावों शब्दों से किया शृंगार यूँ
लग रही दुल्हन सजी मेरी ग़ज़ल
लोगों को दीवाना अपना कर गयी
सरगमों में जब ढली मेरी ग़ज़ल
‘अर्चना’ दिल शाद मेरा हो गया
जब जुबानों पर चढ़ी मेरी ग़ज़ल
14-02-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद