#रुबाइयाँ// तन्हाई
#तन्हाई
कविता मेरे साथ चले तो , जाती है हार तन्हाई।
लोग बहाते हैं आँसू भी , करती है वार तन्हाई।
भीड़ संग चलकर पाते हैं , कुछ ख़ुशियों की सौग़ातेंं;
मैं कवि हूँ मेरी तो है , यह सच्ची यार तन्हाई।
औरों को तो रंक बनाती , पर राजा मुझे तन्हाई।
मुस्क़ान मौन भर सृजन करूँ , बजती मन में शहनाई।
अंतर में भावों के झरने , कर कलकल ध्वनि बहते हैं;
तान यही कविता की बनते , करने क्षण-क्षण सुखदाई।
(C)आर.एस.’प्रीतम’