मेरी हस्ती मेरे बस्ती वालों को पसंद नहीं
मेरी हस्ती मेरे बस्ती वालों को पसंद नहीं
उन्हें दिए की रोशनी पसन्द है सूरज की रोशनी पसन्द नहीं
एक ढर्रे पर जीने की आदत है मेरी बस्ती वालों को
नई बात शुरू नहीँ करनी, पुरानी बात ख़त्म नहीँ ।
सिमट के रह गए हैं एक ही दायरे में,
ये जगह छोड़नी नहीँ, नई जगह पसन्द नहीँ ।
अपने-अपने घर के आगे दिए जलाते हैं
पड़ोसी के घर अंधेरा है उन्हें ख़बर नहीँ ।
अक़सर गली में एक भिखारी बैठता है
अपने घर में बैठ के आराम से कहते हैं,/यहाँ कोई बेघर नहीँ।
घर के गेट को बाहर तक ले आए हैं
कोठी बना ली, फिर भी सबर नहीँ ।
तोड़ देते हैं रास्ते अपने मन मुताबिक,
हाल ये है कि अब चलने को डगर नहीँ ।
सब्ज़ी वाले का ख़ून पी जाते हैं
कहते हैं 20 का सामान 10 में दे, अगर नहीँ मगर नहीँ।
बस्ती वाले एक दूसरे के साथ बैठेते बहुत हैं
लेकिन बैठते मतलब बगैर नहीँ
मतलबी बस्ती, मतलबी वाशिंदे, और बस्ती का नाम?
बेमतलब नगर । ज़रा भी शर्म नहीँ ।