मेरी हथेली पर, तुम्हारी उंगलियों के दस्तख़त
मेरी हथेली पर,
तुम्हारी उंगलियों के दस्तख़त,
दिखते भी नहीं और मिटते भी नहीं,
हमेशा हाथ में रहते हैं ये छिपते भी नहीं,
बेरोजगार की फ़ाइल की तरह,
प्रमाण पत्र बन हाथ को जकड़ लेते हैं,
किसी अजनबी से हाथ मिलाते ही,
मेरी नाकाबिलियत बता देते हैं,
हाथ की रेखाओं की भाँति,
भविष्य की गुप्त योजना बन गए हैं,
अतीत की सख्त रेखाएं बन,
मजदूर के हाथों की जैसी गांठें बन गए हैं,
साथ में देखे ये सपने थे,
जो ठुकराया हुआ अतीत बन गए हैं,
मेरी प्रेम कहानी का ये खुशनुमा नसीब थे,
जो तुम्हारे बिना बदनसीब शब्द बन गए हैं,
अब कोष्टक, कौमा और पूर्ण विराम ही बचा है जिंदगी में,
बाकी सब खाली पन्ने और सुखी हुई स्याही रह गए हैं,
तुम्हारी उंगलियों के दस्तख़त,
मेरे जीवन का अंतिम अध्याय बन गए हैं,
भुरभुरे खुरदुरे तुम्हारे ये एहसास,
बदन पर मख़मल की तरह फिसलते नहीं,
नहाता हूँ तो जिस्म खरोंच देते हैं,
खाता हूँ तो स्वाद बिगाड़ देते हैं,
मेरी हथेली पर,
तुम्हारी उंगलियों के दस्तख़त,
हथेलियों से मुँह ढकता हूँ तो,
आँखें निचोड़ देते हैं।।
prAstya…(प्रशांत सोलंकी)
नई दिल्ली-07