मेरी हत्या करोगे?
———————————–
मैं लोगों से चाहता हूँ नफरत करना।
काश! अच्छा लगता मुझे नफरत करना।
स्नेह और दुलार से वंचित रहने दिया मुझे,इसलिए।
किसी ने मेरी परवाह नहीं की,इसलिए।
मैं बुझा देना चाहता हूँ सारे दीपक और रौशनी ।
काश! बुझाते हुए गौरव होता सारे दीपक और रौशनी।
गहन अंधकार में जीना पड़ा,होते हुए प्रकाश,इसलिए।
किसी ने मेरे दीपक में स्नेह नहीं डाला,इसलिए।
मैं चाहता हूँ सारी पुस्तकें और पुस्तकालय नष्ट कर देना ।
काश! शिक्षित होने की अनुभूति दे जाता इन्हें नष्ट कर देना।
उधार मांग कर इन्हें,पढ़ना पड़ा मुझे वह भी अधूरा,इसलिए।
सबों ने ताले डाल रखे थे पुस्तकें और पुस्तकालय पर,इसलिए।
मैं चाहता हूँ अन्न के सारे गोदामों और बखारों के ताले तोड़ देना।
काश! क्षुधा इतनी बेरहम न हो कि पड़ें ताले तोड़ देना।
भूख शांत करने क्योंकि भीख मांगना पड़ता है,इसलिए।
निर्दयी पहरेदारों के कब्जे में कैद हैं ये,इसलिए।
मैं चाहता हूँ प्रार्थना जो शब्द है और असभ्य है अर्थ बदले उनके।
काश! अर्थ इतना अमानवीय न हो कि अर्थ बदले उनके।
प्रार्थना कर,तुच्छता स्वीकृत करना पड़ता है,इसलिए।
प्रार्थना नपुंसक,निष्फल,वाणिज्यिक रहता है,इसलिए।
मैं चाहता हूँ आदमी की सभ्यता,संस्कृति आदमी से प्रश्न करे।
काश! आदमी समानता,समग्रता,पारिवारिक-समाजिकता का प्रश्न करे।
ऊँच-नीच में विभाजित जन्म और जीवन-प्रक्रिया है,इसलिए।
पाप और पुण्य एक दूसरे को नकार रहा है,इसलिए।
मैं चाहता हूँ तथाकथित ईश्वर आदमी बने,आदमी ईश्वर न बने।
काश! आदमी सिर्फ आदमी बनने की चेष्टा करे ईश्वर न बने।
आदमी में आदमी की बहुत सुंदर सोच है,इसलिए।
आदमी ही बन सकता है ईश्वर सा आदमी,इसलिए।
मैं चाहता हूँ हमपर शासन न करे कोई अधिकार है स्वतन्त्रता।
काश! स्वतंत्र होने की गरिमा भी कहे अधिकार है स्वतन्त्रता।
उच्छृंखल सत्ता हमारा शोषण न कर पाये,इसलिए।
नृप होने का अहंकार स्वतन्त्रता से बड़ा न हो,इसलिए।
बहुत सारे कारण हैं जिस हेतु धनात्मक ऋणात्मकता पसंद है।
दुनिया में मुक्त करो संसाधन,बहुत जरूरतमंद है।
या फिर
मेरी ह्त्या करो,मैं विद्रोह—–
मेरी हत्या करोगे?
————————————————————-