मेरी सोच
मेरी सोच मेरी हदों का निशां है
मगर इसके आगे भी कोई जहां है
सितारों को शायद पता हो न इसका
सितारों से आगे नई कहकशां है
न निकले कभी हम ख़यालों से आगे
मगर फिर भी हमको सफ़र का गुमां है
निगाहों में मेरी हैं आँखें ही आंखें
किसी का नज़रिया नज़र में कहाँ है
हक़ीक़त बयानी नहीं है हक़ीक़त
ज़ुबां बेनज़र है नज़र बेजुबां है